
RADIO AZAD HIND 90.8 FM (Radio Azad)
Explorez tous les épisodes de RADIO AZAD HIND 90.8 FM
Date | Titre | Durée | |
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04 Aug 2023 | हिंदुस्ता हमारा - फिरोजशाह मेहता | 00:24:24 | |
फिरोजशाह मेहता की जयंती पर कार्यक्रम हिंदुस्ता हमारा । | |||
06 Feb 2024 | विशेष कार्यक्रम - लता मंगेशक | 00:27:24 | |
भारतरत्न' सम्मानित गायिका लता मंगेशकर की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम विशेष कार्यक्रम । | |||
19 Aug 2024 | विशेष कार्यक्रम - विश्व संस्कृत दिवस | 00:25:16 | |
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22 Apr 2022 | Prithvi Diwas - Special Program | 00:23:22 | |
हम सभी मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़-पौधे एक साथ इस धरती पर रहते हैं। हर कोई एक दूसरे का पूरक है। पृथ्वी एक मां के समान है जो सभी पर एक जैसी दृष्टि रखती है। पृथ्वी के बिना हम जीवन की परिकल्पना भी नहीं कर सकते। पृथ्वी पर ही हमें जीवित रहने के लिए अन्न, जल इत्यादि मिलता है। सौर मंडल के नौ ग्रहों में से, पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां जीवन है एवं अखंड जैव विविधता है। लेकिन आज हमारे अंधाधुध पर्यावरण का दोहन करने के कारण पृथ्वी का अस्तिव खतरे में आ गया है। जिसे बचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिवस अंतरराष्ट्रीय मंच पर अग्रणी रुप से मनाए जाने वाला पर्यावरण कार्यक्रम है। पृथ्वी दिवस ब्रह्मांड में पृथ्वी की अनूठी जगह का जश्न मनाने का दिन है। पृथ्वी ने ही हमें सब कुछ दिया है उसका शुक्रिया अदा करने के लिए भी यह दिन मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को पृथ्वी को होने वाले नुकसान के प्रति जागरुक करना है, ताकि वो अपने इस ग्रह की रक्षा कर सकें। पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय को दर्शाने के लिये साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिये 22 अप्रैल को पूरे विश्व भर के लोगों के द्वारा एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में हर साल विश्व पृथ्वी दिवस को मनाया जाता है। पहली बार, इसे 1970 में मनाया गया और उसके बाद से लगभग 192 देशों के द्वारा वैश्विक आधार पर सालाना इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई। पृथ्वी दिवस पर हर साल एक नए विषय को केन्द्रिंत कर के इसका आयोजन किया जाता है। वर्ष 2018 का विषय था ‘पृथ्वी को प्लास्टिक के प्रदूषण’ से बचाओ। इसका मकसद प्लास्टिक से हो रही पृथ्वी को हानि से बचाने के लिए लोगों को जागरुक करना था। | |||
18 Oct 2024 | आमने-सामने -सुनीता गुप्ता -गणित शिक्षिका | 00:14:23 | |
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21 Feb 2024 | हिंदुस्ता हमारा - सूफ़ी अम्बा प्रसाद | 00:28:52 | |
क्रांतिकारी सूफ़ी अम्बा प्रसाद की शहादत पर कार्यक्रम हिंदुस्ता हमारा । | |||
14 Apr 2023 | HINDUSTAN HAMARA-M. VISHVESHVRAIYA | 00:23:09 | |
सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरय्या भारत के महान अभियन्ता एवं राजनयिक थे। उन्हें सन 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया था।भारत में उनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। | |||
07 Oct 2023 | वतन का राग - दुर्गा भाभी | 00:20:43 | |
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02 Oct 2022 | Gandhi And Shastri - Azad Hind | 00:24:54 | |
लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया। उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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04 May 2022 | Govind Ram Verma - Yaad Karo Kurbani | 00:57:08 | |
A Freedom Fighter Who Lived For India and Died for India | |||
18 Nov 2022 | Batukeshwar Dutt - Yaad karo Kurbani | 00:32:58 | |
बटुकेश्वर दत्त (१८ नवंबर १९१० - २० जुलाई १९६५)[2] भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले ८ अप्रैल १९२९ को जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केन्द्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आन्दोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था।
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को ग्राम-ओँयाड़ि, जिला - नानी बेदवान (बंगाल) में एक बंगाली–कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रान्त के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।
8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।
इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।
भारत की स्वतंत्रता के बाद नवम्बर, 1947 में अंजलि दत्त से विवाह करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बिहार विधान परिषद ने बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव 1963 में प्राप्त किया। दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं। बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार कहते हैं कि 'स्व॰ दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे। मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है।'
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22 Jul 2022 | Raja Mardan Singh - Hindustan Hamara | 00:29:41 | |
मेरठ में 1857 में स्वत्रंतता आंदोलन की चिंगारी राजा मर्दन सिंह ने भारतगढ़ दुर्ग के प्राचीर से ही उठाई थी। झांसी की रानी महारानी लक्ष्मीबाई के साथ भारतगढ़ दुर्ग में उन्होंने अलग-अलग रियासतों के राजाओं संग बैठक कर मेरठ क्रांति की रूपेरखा बनायी थी। रानी झांसी ने अंग्रेजों से युद्ध लडने को अलग-अलग टोलियों का गठन किया था। जिसमें चंदेरी रियासत के अन्तिम राजा मर्दन सिंह दूसरे नंबर और तीसरे नंबर पर शाहगढ़ नरेश बखतबली सिंह टोलियों का नेतृत्व करते थे। राजा मर्दन सिंह ने अंग्रेजों के दबाव और लालच को दरकिनार कर झांसी रानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध लड़ा। ग्वालियर में झांसी रानी के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने राजा मर्दन सिंह और बखतबली सिंह को बंदी बनाकर लाहौर जेल भेज दिया था। फिर राजा मर्दन सिंह को मथुरा जेल लाया गया। इस जेल में चंदेरी, बानपुर, तालबेहट, गढाकोटा रियासत के अन्तिम शासक राजा मर्दन सिंह अंग्रेजों की क्रूरता को सहन करते हुए 22 जुलाई 1879 अमर शहीद हो गए थे। | |||
08 Oct 2022 | Munshi Premchand - Yaad Karo Kurbani | 00:37:11 | |
धनपत राय श्रीवास्तव जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को 'प्रेमचंद युग' या 'प्रेमचन्द युग' कहा जाता है। | |||
27 Feb 2024 | आदि विद्रोही - डॉ० भगवान दास माहौर | 00:17:07 | |
क्रान्तिकारी डॉ० भगवान दास माहौर की जयंती पर कार्यक्रम आदि विद्रोही । | |||
22 Nov 2022 | Jhalkari Devi - Hindustan Hamara | 00:29:39 | |
झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं।वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है, उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में है, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से लखनऊ में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है
झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी, और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं का रख-रखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थीं। एक बार जंगल में उसकी मुठभेड़ एक तेंदुए से हो गयी थी और झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से उस तेंदुआ को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। उसकी इस बहादुरी से खुश होकर गाँव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, पूरन भी बहुत बहादुर था और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले में गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था।
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08 Jul 2024 | इतिहास के पन्नों से - भाग-3 - शक्ति की प्रतीक रानी दुर्गावती का अदम्य साहस, शौर्य व बलिदान" | 00:21:37 | |
रेडियो कार्यक्रम इतिहास के पन्नों से में "मध्य भारत के जन-जातीय राजवंश और स्थापत्य कला में उनका योगदान" भाग-3 कार्यक्रम मैं पुरातत्वविद सुश्री पूजा सक्सेना से चर्चा विषय नारी "शक्ति की प्रतीक रानी दुर्गावती का अदम्य साहस, शौर्य व बलिदान" । | |||
07 Feb 2023 | Manmath Nath Gupt - Yaad karo Kurbani | 00:40:01 | |
मन्मथनाथ गुप्त भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक थे। उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी तथा बांग्ला में आत्मकथात्मक, ऐतिहासिक एवं गल्प साहित्य की रचना की है। वे मात्र १३ वर्ष की आयु में ही स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गये और जेल गये। बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने और १७ वर्ष की आयु में उन्होंने सन् १९२५ में हुए काकोरी काण्ड में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनकी असावधानी से ही इस काण्ड में अहमद अली नाम का एक रेल-यात्री मारा गया जिसके कारण ४ लोगों को फाँसी की सजा मिली जबकि मन्मथ की आयु कम होने के कारण उन्हें मात्र १४ वर्ष की सख्त सजा दी गयी। १९३७ में जेल से छूटकर आये तो फिर क्रान्तिकारी लेख लिखने लगे जिसके कारण उन्हें १९३९ में फिर सजा हुई और वे भारत के स्वतन्त्र होने से एक वर्ष पूर्व १९४६ तक जेल में रहे। स्वतन्त्र भारत में वे योजना, बाल भारती और आजकल नामक हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे। नई दिल्ली स्थित निजामुद्दीन ईस्ट में अपने निवास पर २६ अक्टूबर २००० को दीपावली के दिन उनका जीवन-दीप बुझ गया। क्रान्तिकारी आन्दोलन के एक क्रियाशील सदस्य रहे, जिन दिनों की चर्चा बाद में उन्होंने अपनी पुस्तक 'क्रान्तियुग के संस्मरण' में की है। वे संस्मरण इतिहास के साथ-साथ अकाल्पनिक गद्य-शैली के अच्छे नमूने भी हैं। आपने क्रान्तिकारी आन्दोलन का एक विधिवत इतिहास भी प्रस्तुत किया है - भारत में सशस्त्र क्रान्तिकारी चेष्टा का इतिहास (प्रकाशन वर्ष:1939 ई.)। | |||
23 Jul 2023 | वतन का राग - चन्द्रशेखर आज़ाद | 00:26:45 | |
हम सबसे महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक चन्द्रशेखर आजाद को याद करते हैं, जो अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार न होने के अपने संकल्प पर खरे उतरे और 27 फरवरी 1931 को खुद को गोली मार ली। चन्द्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को तत्कालीन अलीराजपुर रियासत में हुआ था, जो अब मध्य प्रदेश में है। चन्द्रशेखर ने 1920-21 में बनारस में असहयोग आंदोलन में भाग लिया और विदेशी वस्तुओं की बिक्री का विरोध किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और खरेघाट की अदालत में मुकदमा चलाया गया, जहां पीठासीन मजिस्ट्रेट स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था। न्यायालय में चन्द्रशेखर का रवैया उद्दंडतापूर्ण था। बताया गया कि उन्होंने अपना नाम 'आजाद', अपने पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और अपना निवास स्थान 'जेल' घोषित किया था। मजिस्ट्रेट इस तरह की अवज्ञा से हैरान था और उसने चन्द्रशेखर को पंद्रह कोड़े मारे, और हर कोड़े के साथ उसने महात्मा गांधी की जय और वंदे मातरम का नारा लगाया, और 'आजाद' नाम कमाया। असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के साथ, चन्द्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने लगे। वह मन्मथ नाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आये और बनारस में क्रांतिकारी दल के सदस्य बन गये। 1925 में काकोरी मेल डकैती में शामिल होकर राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद झाँसी चले गये और मास्टर रूद्र नारायण सिंह के संरक्षण में रहे। झाँसी में उन्हें सदाशिव राव मलकापुरकर, भगवान दास माहौर और विश्वनाथ वैशम्पायन जैसे अच्छे सहयोगी मिले। पुलिस छापे से बचने के लिए चन्द्रशेखर आज़ाद ओरछा भाग गये। 8 और 9 सितंबर 1928 को फ़िरोज़ शाह कोटला में क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय बैठक हुई और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन, एचएसआरए अस्तित्व में आया। हालाँकि चन्द्रशेखर आज़ाद बैठक में शामिल नहीं हुए, लेकिन सभी ने उन्हें एचएसआरए के कमांडर-इन-चीफ के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को सॉन्डर्स की हत्या में सक्रिय भाग लिया और उनके कहने पर ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम विस्फोट किया। वह दिसंबर 1929 में वायसराय की ट्रेन को उड़ाने के प्रयास में भी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे। 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में चन्द्रशेखर आजाद को एक सहयोगी ने धोखा देकर पुलिस को सौंप दिया था। जब वह भारी हथियारों से लैस पुलिसकर्मियों से घिरा हुआ था, चन्द्रशेखर आज़ाद ने एक छोटी पिस्तौल और कुछ कारतूसों के साथ अकेले ही अपने पीछा करने वालों को रोके रखा। अंततः उसकी पिस्तौल में केवल एक ही गोली बची, उसने गिरफ्तार न होने के अपने संकल्प को पूरा करने के लिए उसे अपनी कनपटी पर गोली मार ली। संगीत जिस पार्क में यह घटना घटी उसका नाम उनकी स्मृति में प्रयागराज में चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क रखा गया है। उन्होंने जिस पिस्तौल का इस्तेमाल किया वह आज भी प्रयागराज के संग्रहालय की दीवारों पर सजी हुई है। | |||
07 May 2023 | वतन का राग - रवींद्रनाथ टैगोर | 00:26:07 | |
रबीन्द्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा वे ही थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। | |||
14 Oct 2023 | शौर्य गाथा - सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेतरपाल | 00:14:16 | |
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08 Apr 2022 | Mangal Pandey - Azad Hind | 00:25:47 | |
मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया। तथा मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से काटने से मना कर दिया था,फलस्वरूप उन्हे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई| | |||
15 Sep 2024 | टेक गुरु - डिजिटल डिटॉक्स, डिजिटल फास्टिंग | 00:27:22 | |
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08 Oct 2022 | Vaayu Sena Diwas - Special Program | 00:14:55 | |
भारतीय वायुसेना के मिशन, सशस्त्र बल अधिनियम 1947 के द्वारा परिभाषित किया गया है भारत के संविधान और सेना अधिनियम 1950, हवाई युद्धक्षेत्र में: "भारत और सहित हर भाग की रक्षा, उसके बचाव के लिए तैयारी और ऐसे सभी कृत्यों के रूप में अपनी अभियोजन पक्ष और इसके प्रभावी वियोजन को समाप्ति के बाद युद्ध के समय में अनुकूल किया जा सकता है।" इस प्रकार, भारतीय वायु सेना के सभी खतरों से भारतीय हवाई क्षेत्र की रक्षा करना, सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं के साथ संयोजन के रूप में भारतीय क्षेत्र और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा प्राथमिक उद्देश्य है। भारतीय वायु सेना युद्ध के मैदान में, भारतीय सेना के सैनिकों को हवाई समर्थन तथा सामरिक और रणनीतिक एयरलिफ्ट करने की क्षमता प्रदान करता है। भारतीय वायु सेना एकीकृत अंतरिक्ष प्रकोष्ठ के साथ दो अन्य शाखाओं भारतीय सशस्त्र बल, अंतरिक्ष विभाग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ अंतरिक्ष आधारित संपत्तियों के उपयोग प्रभावी ढंग से करने के लिए, सैनिक दृष्टि से इस संपत्ति पर ध्यान देंता है। भारतीय वायु सेना भारतीय सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं के साथ साथ आपदा राहत कार्यक्रमो में प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री गिराने, खोज एवं बचाव अभियानों, आपदा क्षेत्रों में नागरिक निकासी उपक्रम में सहायता प्रदान करता है। भारतीय वायु सेना ने 2004 में सुनामी तथा 1998 में गुजरात चक्रवात के दौरान प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए राहत आपरेशनों के रूप में व्यापक सहायता प्रदान की। भारतीय वायु सेना अन्य देशों की राहत कार्यक्रमों में भी सहायता प्रदान करता है, जैसा की उसने ऑपरेशन रेनबो(Rainbow) के रूप में श्रीलंका में किया। | |||
17 Aug 2022 | Madan lal Dheengra - Azad Hind | 00:24:37 | |
मदनलाल ढींगरा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे। भारतीय स्वतंत्रता की चिनगारी को अग्नि में बदलने का श्रेय महान शहीद मदन लाल धींगरा को ही जाता है । भले ही मदन लाल ढींगरा के परिवार में राष्ट्रभक्ति की कोई ऐसी परंपरा नहीं थी किंतु वह खुद से ही देश भक्ति के रंग में रंगे गए थे । वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। कर्जन वायली की हत्या के आरोप में उन पर 23 जुलाई, 1909 का अभियोग चलाया गया । मदन लाल ढींगरा ने अदालत में खुले शब्दों में कहा कि "मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं।" यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है। मदनलाल धींगड़ा का जन्म १८ सितंबर सन् १८८३ को पंजाब प्रान्त के एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को जीवन यापन के लिये पहले एक क्लर्क के रूप में, फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अन्त में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होने यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन् १९०६ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया। विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी ही, इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी। | |||
29 Feb 2024 | आज़ाद हिन्द - सुरेन्द्र साए | 00:26:15 | |
स्वतन्तता सेनानी सुरेन्द्र साए की शहादत पर कार्यक्रम आज़ाद हिन्द । | |||
03 Dec 2023 | वतन का राग - खुदीराम बोस | 00:22:08 | |
क्रांतिकारी खुदीराम बोस की जयंती पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
28 Jun 2023 | वतन का राग - मान कुमार बसु ठाकुर | 00:27:12 | |
वतन का राग - मान कुमार बसु ठाकुर | |||
25 Dec 2023 | वतन का राग - पंडित मदन मोहन मालवीय | 00:27:07 | |
पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
17 Apr 2023 | वतन का राग - डॉ. सर्वपाली राधा कृष्णन | 00:26:04 | |
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। | |||
16 Dec 2022 | Vijay Diwas - Special Program | 00:29:40 | |
हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन साल 1971 को भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ जिसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई और बांग्लादेश का... निर्माण हुआ. इस दौरान पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था. भारत विजय दिवस को भारत-पाक युद्ध में जीत के रूप में स्वीकार करता है, जिसे स्वर्णिम विजय वर्ष के नाम से जाना जाता है. | |||
15 Feb 2024 | वतन का राग - सुभद्रा कुमारी चौहान | 00:26:10 | |
सुभद्रा कुमारी चौहान की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
14 Apr 2023 | वतन का राग - डॉ. भीमराव अंबेडकर | 00:25:48 | |
भीमराव रामजी आम्बेडकर - डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे। व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। इसके बाद आम्बेडकर भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए हिंदू पंथ में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। सन 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। 14 अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती के तौर पर भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है।
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05 Mar 2023 | HINDUSTAN HAMARA-PRATHVI SINGH AZAD | 00:27:46 | |
बाबा पृथ्वी सिंह आजाद (१८९२ - १९८९) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, क्रान्तिकारी तथा गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब के भीम सेन सचर सरकार में मन्त्री रहे। वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे। सन १९७७ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया। पृथ्वी सिंह को 'जिन्दा शहीद' भी कहा जाता है। उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी की सजा सुनायी गयी थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। स्वतन्त्रता संग्राम में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्हें सेल्युलर जेल में रखा गया था । उनकी 'लेनिन के देश में' नामक पुस्तक बहु चर्चित पुस्तकों में से एक है। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय अजय भवन में जीवन पर्यन्त रहे। | |||
11 Jul 2024 | शौर्य गाथा - सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे | 00:13:54 | |
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05 Sep 2022 | Baba Bhag Singh - yaad karo Kurbani | 00:54:16 | |
unsung Hero Of India | |||
14 Nov 2022 | Madan Mohan malviya - Azad Hind | 00:24:49 | |
महामना मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।
कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया।
भारत सरकार ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया।
अपने हृदय की महानता के कारण सम्पूर्ण भारतवर्ष में 'महामना' के नाम से पूज्य मालवीयजी को संसार में सत्य, दया और न्याय पर आधारित सनातन धर्म सर्वाधिक प्रिय था। करुणामय हृदय, भूतानुकम्पा, मनुष्यमात्र में अद्वेष, शरीर, मन और वाणी के संयम, धर्म और देश के लिये सर्वस्व त्याग, उत्साह और धैर्य, नैराश्यपूर्ण परिस्थितियों में भी आत्मविश्वासपूर्वक दूसरों को असम्भव प्रतीत होने वाले कर्मों का संपादन, वेशभूषा और आचार विचार में मालवीयजी भारतीय संस्कृति के प्रतीक तथा ऋषियों के प्राणवान स्मारक थे।
"सिर जाय तो जाय प्रभु! मेरो धर्म न जाय" मालवीयजी का जीवन व्रत था जिससे उनका वैयक्तिक और सार्वजनिक जीवन समान रूप से प्रभावित था। यह आदर्श उन्हें बचपन में ही अपन पितामह प्रेमधर श्रीवास्तव , जिन्होंने 108 दिन निरन्तर 108 बार श्रीमद्भागवत का पारायण किया था, से राधा-कृष्ण की अनन्य भक्ति, पिता ब्रजनाथजी की भागवत-कथा से धर्म-प्रचार एवं माता मूनादेवी से दुखियों की सेवा करने का स्वभाव प्राप्त हुआ था। धनहीन किन्तु निर्लोभी परिवार में पलते हुए भी देश की दरिद्रता तथा अर्थार्थी छात्रों के कष्ट निवारण के स्वभाव से उनका जीवन ओतप्रोत था। बचपन में जिन आचार विचारों का निर्माण हुआ उससे रेल में, जेल में तथा जलयान में कहीं पर भी प्रात:सायं सन्ध्योपासना तथा श्रीमद्भागवत और महाभारत का स्वाध्याय उनके जीवन का अभिन्न अंग बना रहा।
मालवीय जी ने प्रयाग की धर्म ज्ञानोपदेश तथा विद्याधर्म प्रवर्द्धिनी पाठशालाओं में संस्कृत का अध्ययन समाप्त करने के पश्चात् म्योर सेंट्रल कालेज से 1884 ई० में कलकत्ता विश्वविद्यालय की बी० ए० की उपाधि ली। इस बीच अखाड़े में व्यायाम और सितार पर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा वे बराबर देते रहे। उनका व्यायाम करने का नियम इतना अद्भुत था कि साठ वर्ष की अवस्था तक वे नियमित व्यायाम करते ही रहे।
सात वर्ष के मदनमोहन को धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला के देवकीनन्दन मालवीय माघ मेले में ले जाकर मूढ़े पर खड़ा करके व्याख्यान दिलवाते थे। शायद इसका ही परिणाम था कि कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में अंग्रेजी के प्रथम भाषण से ही प्रतिनिधियों को मन्त्रमुग्ध कर देने वाले मृदुभाषी मालवीयजी उस समय विद्यमान भारत देश के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के व्याख्यान वाचस्पतियों में इतने अधिक प्रसिद्ध हुए। हिन्दू धर्मोपदेश, मन्त्रदीक्षा और सनातन धर्म प्रदीप ग्रथों में उनके धार्मिक विचार आज भी उपलब्ध हैं जो परतन्त्र भारत देश की विभिन्न समस्याओं पर बड़ी कौंसिल से लेकर असंख्य सभा सम्मेलनों में दिये गये हजारों व्याख्यानों के रूप में भावी पीढ़ियों के उपयोगार्थ प्रेरणा और ज्ञान के अमित भण्डार हैं। उनके बड़ी कौंसिल में रौलट बिल के विरोध में निरन्तर साढ़े चार घण्टे और अपराध निर्मोचन बिल पर पाँच घण्टे के भाषण निर्भयता और गम्भीरतापूर्ण दीर्घवक्तृता के लिये आज भी स्मरणीय हैं। उनके उद्घरणों में हृदय को स्पर्श करके रुला देने की क्षमता थी, परन्तु वे अविवेकपूर्ण कार्य के लिये श्रोताओं को कभी उकसाते नहीं थे।
म्योर कालेज के मानसगुरु महामहोपाध्याय पं० आदित्यराम भट्टाचार्य के साथ 1880 ई० में स्थापित हिन्दू समाज में मालवीयजी भाग ले ही रहे थे कि उन्हीं दिनों प्रयाग में वाइसराय लार्ड रिपन का आगमन हुआ। रिपन जो स्थानीय स्वायत्त शासन स्थापित करने के कारण भारतवासियों में जितने लोकप्रिय थे उतने ही अंग्रेजों के कोपभाजन भी। इसी कारण प्रिसिपल हैरिसन के कहने पर उनका स्वागत संगठित करके मालवीयजी ने प्रयाग वासियों के हृदय में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया।
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19 Aug 2023 | आज़ाद हिन्द - एस. सत्यमूर्ति | 00:26:25 | |
सुंदर शास्त्री सत्यमूर्ति (19 अगस्त 1887 - 28 मार्च 1943) एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे। 1887 में पुदुक्कोट्टई रियासत के थिरुमायम में जन्मे सत्यमूर्ति ने महाराजा कॉलेज, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज और मद्रास लॉ कॉलेज में पढ़ाई की। कुछ समय तक वकील के रूप में अभ्यास करने के बाद, सत्यमूर्ति ने एक प्रमुख वकील और राजनीतिज्ञ एस. श्रीनिवास अयंगर के सुझाव पर राजनीति में प्रवेश किया, जो बाद में उनके गुरु बने। उनकी वाकपटुता के लिए उनकी बहुत प्रशंसा की गई और वह एस. श्रीनिवास अयंगर, सी. राजगोपालाचारी और टी. प्रकाशम के साथ मद्रास प्रेसीडेंसी से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी राजनेताओं में से एक थे। सत्यमूर्ति को के. कामराज का गुरु माना जाता था, जो 1954 से 1962 तक मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री थे। सत्यमूर्ति ने बंगाल विभाजन, रोलेट एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड और साइमन कमीशन। सत्यमूर्ति 1930 से 1934 तक स्वराज पार्टी की प्रांतीय शाखा और 1936 से 1939 तक तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। वह 1934 से 1940 तक इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे और 1939 से 1943 तक मद्रास के मेयर रहे। सत्यमूर्ति को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए जेल में डाल दिया गया था। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन 28 मार्च 1943 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। सत्यमूर्ति को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए जेल में डाल दिया गया था। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन 28 मार्च 1943 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। सत्यमूर्ति को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए जेल में डाल दिया गया था। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन 28 मार्च 1943 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। | |||
09 Oct 2022 | Turiya Junle Satyagrah - Azad Hind | 00:25:47 | |
1930 में जब गांधीजी ने दांडी मार्च कर नमक सत्याग्रह किया था, तब सिवनी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दुर्गाशंकर मेहता के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह चलाया। सिवनी से 9-10 मील दूर सरकारी जंगल चंदन बगीचों में घास काटकर यह सत्याग्रह किया जा रहा था। इसी सिलसिले में 9 अक्टूबर 1930 को सिवनी जिले के ग्राम दुरिया, जोकि सिवनी से 28 मील दूर स्थित है, में सत्याग्रह की तारीख निश्चित हुई। कुछ स्वयंसेवक घास कोटकर सत्याग्रह करने गए। पुलिस दरोगा और रेंजर ने सत्याग्रहियों का समर्थन करने आए जनसमुदाय के साथ बहुत अभद्र व्यवहार किया जिससे जनता उत्तेजित हो उठी। सिवनी के डिप्टी कमिश्नर के इस हुक्म पर कि "टीच देम ए लेसन" पुलिस ने गोली चला दी। घटनास्थल पर ही तीन महिलाएँ- गुड्डों दाई, रैना वाई, बेमा बाई और एक पुरुष विरजू गोंडू शहीद हो गए, चारों शहीद आदिवासी थे। इस घटना से मध्यप्रदेश के गिरिजन समुदाय में भी स्वतंत्रता को ज्योति प्रज्वलित होने का पुष्ट प्रमाण मिलता है। इन शहीदों के शब भी अंतिम संस्कार के लिए इनके परिवार वालों को नहीं दिए गए। | |||
02 Jul 2024 | वतन का राग - सिराजुद्दौला | 00:22:18 | |
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19 Aug 2024 | इतिहास के पन्नों से, भाग-9 - नारी शक्ति की प्रतीक रानी दुर्गावती के युद्ध की विजय गाथा” | 00:23:17 | |
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06 May 2023 | वतन का राग - भूलाभाई देसाई | 00:26:05 | |
"भूलाभाई देसाई" भारत के प्रसिद्ध वकील, प्रख्यात विधिवेत्ता, प्रमुख संसदीय नेता तथा महात्मा गांधी के विश्वस्त सहयोगी। आजाद हिंद फौज के सेनापति श्री शहनवाज, ढिल्लन तथा सहगल पर राजद्रोह के मुकदमें में सैनिकों का पक्षसमर्थन आपने जिस कुशलता तथा योग्यता से किया, उससे आपकी कीर्ति देश में ही नहीं, विदेश में भी फैल गई। | |||
27 Feb 2024 | हिंदुस्ता हमारा - चंद्रशेखर आजाद | 00:30:15 | |
चंद्रशेखर आजाद की शहादत पर कार्यक्रम हिंदुस्ता हमारा । | |||
14 Sep 2022 | Nirmal Sen Anurup Sen - Yaad Karo Kurbani | 00:44:35 | |
रसिकचंद्र सेन के पुत्र, निर्मलकुमार सेन (1898-1932) का जन्म अविभाजित बंगाल के छत्ताग्राम के कोएपारा गांव में हुआ था। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, वे छत्ताग्राम एफ एम स्कूल में चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे थे, जब वे छत्रग्राम गुप्त समाज के सदस्य बन गए और अपनी पढ़ाई बंद कर दी। 1920 में, उन्हें हथियार और गोला-बारूद हासिल करने के लिए म्यांमार भेजा गया था; परन्तु सफलता नहीं मिली। घर वापस, उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया; 1924 में गिरफ्तार किया गया था, और तीन साल के लिए कैद किया गया था। छत्रग्राम उत्थान के दिन (18 अप्रैल 1930), उन्होंने और लोकनाथ बल ने सहायक सेना शस्त्रागार पर छापे का नेतृत्व किया, जिसके बाद जलालाबाद युद्ध (22 अप्रैल 1930) हुआ; जिसमें निर्मल सेन ने नेताओं को बचाने के लिए इनर-लाइन पोजीशन का बचाव किया। रात में, निर्मल सेन, सूर्य सेन और अन्य लोग फरार हो गए; जिसके दौरान उन्होंने हमेशा मस्तदा के बंद रक्षक के रूप में कार्य किया। इस बीच, निर्मल सेन, अपूर्वा सेन, प्रीतिलता वद्देदार और मास्टरदा ने छत्रग्राम के ढलघाट गांव में सावित्री देवी के घर में शरण ली थी। 13 जून 1932 को, रात के अंधेरे में, यह अर्धसैनिक बलों से घिरा हुआ था। इसके बाद हुई बंदूक की लड़ाई में, निर्मल सेन ने कैप्टन कैमरन को गोली मार दी, जब वह पहली मंजिल पर मास्टरदा के कमरे तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। निर्मल और अपूर्वा सेन ने तब तक लगातार फायरिंग करके सेना को व्यस्त रखा जब तक कि मास्टरदा और प्रीतिलता वद्देदार घेरा तोड़ कर सुरक्षित भाग नहीं पाए। इस तरह, निर्मल और अपूर्वा सेन दोनों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। | |||
15 Sep 2023 | वतन का राग - बाबा पृथ्वी सिंह आजाद | 00:25:46 | |
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02 Jul 2023 | आज़ाद हिन्द- असित भट्टाचार्य | 00:25:12 | |
असित भट्टाचार्य भारत के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। असित प्रारंभ से ही क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े हुए थे और क्रांति दल के सदस्य थे। 31 मार्च, 1933 को हबीबगंज में एक डकैती हुई, जिसमें असित भट्टाचार्य ने महत्वपूर्ण रूप से भाग लिया। | |||
08 Sep 2024 | बाल सभा - बाल अधिकार, बाल मज़दूरी, बाल हिंसा एवं बाल शोषण | 00:38:23 | |
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08 Apr 2023 | हिंदुस्तान हमारा - मंगल पांडे | 00:29:29 | |
मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया। तथा मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से काटने से मना कर दिया था,फलस्वरूप उन्हे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई| | |||
23 Jun 2022 | Shyama Prasad Mukheerji - Yaad Karo Kurbani | 00:17:23 | |
6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी। | |||
08 Nov 2022 | Gurunanak jayanti - Special Program | 00:33:18 | |
नानक (कार्तिक पूर्णिमा 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि )गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म स्थान गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान में और समाधि स्थल करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है।इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवण्डी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्री(क्षत्रिय)कुल में हुआ था। तलवण्डी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त का एक नगर है। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किन्तु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवम्बर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूचन्द खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवण्डी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था। विद्यालय जाते हुए बालक नानक बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने-लिखने में इनका मन नहीं लगा। 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्राप्ति के सम्बन्ध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिन्तन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएँ घटीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे। नानक के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार का नतमस्तक होना इनका विवाह बालपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अन्तर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरान्त 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। उन पुत्रों में से 'श्रीचन्द आगे चलकर उदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुए। | |||
28 Dec 2023 | शब्दो के शिल्पकार - सुमित्रानंदन पंत | 00:22:38 | |
भारतीय कवि सुमित्रानंदन पंत की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम शब्दो के शिल्पकार । | |||
03 Feb 2024 | वतन का राग - बाबा रामसिंह कूका | 00:25:38 | |
बाबा रामसिंह कूका की जयंती पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
10 Dec 2023 | वतन का राग - जदुनाथ सरकार | 00:26:00 | |
जदुनाथ सरकार की जयंती पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
02 Jun 2023 | आमने सामने - भोपाल विलिनीकरण का इतिहास पर घनश्याम सक्सेना जी (वरिष्ठ साहित्यकार) से बातचीत | 00:26:22 | |
कार्यक्रम आमने सामने में भोपाल विलिनीकरण का इतिहास पर घनश्याम सक्सेना जी (वरिष्ठ साहित्यकार) से बातचीत | | |||
08 Dec 2022 | Bhai Parmanand - Azad Hind | 00:25:19 | |
भाई परमानन्द भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। भाई जी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे जहाँ आर्यसमाज और वैदिक धर्म के अनन्य प्रचारक थे, वहीं इतिहासकार, साहित्यमनीषी और शिक्षाविद् के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की थी। सरदार भगत सिंह, सुखदेव, पं॰ राम प्रसाद 'बिस्मिल', करतार सिंह सराबा जैसे असंख्य राष्ट्रभक्त युवक उनसे प्रेरणा प्राप्त कर बलि-पथ के राही बने थे।
देशभक्ति, राजनीतिक दृढ़ता तथा स्वतन्त्र विचारक के रूप में भाई जी का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा। आपने कठिन तथा संकटपूर्ण स्थितियों का डटकर सामना किया और कभी विचलित नहीं हुए। आपने हिंदी में भारत का इतिहास लिखा है। इतिहास-लेखन में आप राजाओं, युद्धों तथा महापुरुषों के जीवनवृत्तों को ही प्रधानता देने के पक्ष में न थे। आपका स्पष्ट मत था कि इतिहास में जाति की भावनाओं, इच्छाओं, आकांक्षाओं, संस्कृति एवं सभ्यता को भी महत्व दिया जाना चाहिए। आपने अपने जीवन के संस्मरण भी लिखे हैं जो युवकों के लिये आज भी प्रेरणा देने में सक्षम हैं।
भाई जी का जन्म ४ नवम्बर १८७६ को जिला झेलम (अब पाकिस्तान में स्थित) के करियाला ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम भाई ताराचन्द्र था। इसी पावन कुल के भाई मतिदास ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी के साथ दिल्ली पहुँचकर औरंगजेब की चुनौती स्वीकार की थी। सन् १९०२ में भाई परमानन्द ने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और लाहौर के दयानन्द एंग्लो महाविद्यालय में शिक्षक नियुक्त हुए।
भारत की प्राचीन संस्कृति तथा वैदिक धर्म में आपकी रुचि देखकर महात्मा हंसराज ने आपको भारतीय संस्कृति का प्रचार करने के लिए अक्टूबर, १९०५ में अफ्रीका भेजा। डर्बन में भाई जी की गांधीजी से भेंट हुई। अफ्रीका में आप तत्कालीन प्रमुख क्रांतिकारियों सरदार अजीत सिंह, सूफी अंबाप्रसाद आदि के संर्पक में आए। इन क्रांतिकारी नेताओं से संबंध तथा कांतिकारी दल की कारवाही पुलिस की दृष्टि से छिप न सकी। अफ्रीका से भाई जी लन्दन चले गए। वहाँ उन दिनों श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा विनायक दामोदर सावरकर क्रान्तिकारी कार्यों में सक्रिय थे। भाई जी इन दोनों के सम्पर्क में आये।
भाई जी सन् १९०७ में भारत लौट आये। दयानन्द वैदिक महाविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ वे युवकों को क्रान्ति के लिए प्रेरित करने के कार्य में सक्रिय रहे। सरदार अजीत सिंह तथा लाला लाजपत राय से उनका निकट का सम्पर्क था। इसी दौरान लाहौर पुलिस उनके पीछे पड़ गयी। सन् १९१० में भाई जी को लाहौर में गिरफ्तार कर लिया गया। किन्तु शीघ्र ही उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। इसके बाद भाई जी अमरीका चले गये। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों में वैदिक (हिन्दू) धर्म का प्रचार किया। वहाँ मार्तनक उपनिवेश (Martinique) में आपकी प्रख्यात क्रांतिकारी लाला हरदयाल से भेंट हुई। भारत में क्रांति कराने के लिए प्रमुख कार्यकर्ताओं के दल को यहाँ संघटित किया जा रहा था। लाला हरदयाल की प्रेरणा से आप भी इस दल में सम्मिलित हो गए। करतार सिंह सराबा, विष्णु गणेश पिंगले तथा अन्य युवकों ने उनकी प्रेरणा से अपना जीवन भारत की स्वाधीनता के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया। १९१३ में भारत लौटकर भाई जी पुन: लाहौर में युवकों को क्रान्ति की प्रेरणा देने के कार्य में सक्रिय हो गये।
भाई परमानन्द ने दक्षिण अमेरिका के कई ब्रिटिश उपनिवेशों का दौरा किया और लाला हरदयाल से सान फ्रैंसिस्को में पुनः मिले। गदर पार्टी के संस्थापकों में वे भी शामिल थे। सन् १९१४ में एक व्याख्यान यात्रा के लिये वे लाला हरदयाल के साथ पोर्टलैण्ड गये तथा गदर पार्टी के लिये 'तवारिखे-हिन्द' (भारत का इतिहास) नामक ग्रंथ की रचना की। भाई जी द्वारा लिखी पुस्तक "तवारीखे-हिन्द" तथा उनके लेख युवकों को सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्रेरित करते थे।
भारत में क्रांति करने के उद्देश्य (तथाकथित 'गदर षडयन्त्र') से वे भारत लौट आये। उन्होने दावा किया था कि उनके साथ पाँच हजार क्रांतिकारी (गदरी) भारत आये थे। गदर क्रान्ति के नेताओं में वे भी थे। उनको पेशावर में क्रान्ति का नेतृत्व करने का जिम्मा दिया गया था। २५ फ़रवरी १९१५ को लाहौर में गदर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ भाई जी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उनके विरुद्ध अमरीका तथा इंग्लैण्ड में अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने, करतार सिंह सराबा तथा अन्य अनेक युवकों को सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्रेरित करने, आपत्तिजनक साहित्य की रचना करने जैसे आरोप लगाकर फाँसी की सजा सुना दी गयी। सजा का समाचार मिलते ही देशभर के लोग उद्विग्न हो उठे। अन्तत: भाई जी की फाँसी की सजा रद्द कर उन्हें आजीवन कारावास का दण्ड देकर दिसम्बर, १९१५ में अण्डमान (काला पानी)
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24 Jun 2023 | वतन का राग-रानी दुर्गावती | 00:25:53 | |
रानी दुर्गावती चन्देल गढ़ा साम्राज्य की शासक महारानी थीं। वो भारत की एक प्रसिद्ध चन्देल क्षत्राणी वीरांगना थीं, जिनका जन्म दुर्गाष्टमी के दिन 5 अक्टूबर 1524 इस्वी को कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन चन्देल (द्वितीय) के यहाँ हुआ था। | |||
03 Jan 2024 | आज़ाद हिन्द - रानी वेलु नचियार | 00:25:50 | |
वीरांगना रानी वेलु नचियार की जयंती पर कार्यक्रम आज़ाद हिन्द । | |||
16 Aug 2023 | विशेष कार्यक्रम - अटल बिहारी वाजपेई | 00:25:41 | |
25 दिसंबर को स्वतंत्रता सेनानी, कवि और पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है, जिनका जन्म 1924 में ग्वालियर में हुआ था। 1942 में, 16 साल की उम्र में, वाजपेयी और उनके बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 दिनों के लिए गिरफ्तार किया गया था। वह आर्य समाज की युवा शाखा के सदस्य के रूप में सामाजिक जीवन में सक्रिय थे। विभाजन के दंगों के कारण उन्होंने कानून की पढ़ाई छोड़ दी। आजादी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उनके शासन को पोखरण 2 परमाणु परीक्षण, स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग परियोजना जैसी प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और उदारीकरण और निजीकरण सुधारों के लिए याद किया जाता है। वाजपेयी एक मशहूर कवि भी थे. उनकी प्रकाशित कृतियों में कैदी कविराज की कुंडलियां और अमर आगाई शामिल हैं। राष्ट्रहित में उनके अमूल्य योगदान के लिए, उन्हें 2015 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। महान आत्मा ने 16 अगस्त 2018 को अंतिम सांस ली। | |||
10 Jan 2023 | Hindi Andolan - Yaad Karo Kurbani | 00:57:03 | |
भारत कई राज भाषाओं और लिपियों से समृद्ध देश है। यहां कई सारी भाषाएं बोली जाती हैं। देश के आधे से ज्यादा भाग को हिंदी भाषा ही जोड़ती है। भले ही अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ गया हो लेकिन हिंदी अधिकतर भारतीयों की मातृभाषा है। हालांकि भारत में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है लेकिन राजभाषा के तौर पर हिंदी की खास पहचान है। भारत के साथ ही विदेशों में बसे भारतीयों को भी हिंदी भाषा ही एकजुट करती है। हिंदी हिंदुस्तान की पहचान भी है और गौरव भी। हिंदी को लेकर दुनियाभर के तमाम देशों में बसे भारतीयों को एक सूत्र में बांधने के लिए विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हर साल विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को होता है। वहीं भारत में हिंदी दिवस 14 सितंबर को होता है। | |||
16 Jan 2024 | शब्दो के शिल्पकार - शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय | 00:25:24 | |
उपन्यासकार एवं लघुकथाकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की पुण्यतिथी पर कार्यक्रम शब्दो के शिल्पकार । | |||
19 Jan 2023 | YAAD KARO QURBANI - MAHARANA PRATAP | 00:46:00 | |
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और पूरे मुगल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया । उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था। | |||
03 Mar 2024 | शौर्य गाथा - संजय कुमार | 00:13:17 | |
परमवीर चक्र सम्मानित संजय कुमार की जयंती पर कार्यक्रम शौर्य गाथा प्रसारण समय । | |||
27 Aug 2022 | Shree Krishna Khaparde - Aazd Hind | 00:24:53 | |
गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे उर्फ दादासाहेब खापर्डे
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23 Sep 2024 | वतन का राग -रामधारी सिंह दिनकर | 00:25:46 | |
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04 Aug 2022 | Firoz Shah Mehta - Hindustan Hamara | 00:26:19 | |
अपने समय के प्रसिद्ध भारतीय नेता और स्पष्ट वक्ता फिरोज़शाह मेहता का जन्म 4 अगस्त, 1845 ई. को मुम्बई के एक प्रसिद्ध व्यवसायी परिवार में हुआ था। आपने भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। पारसी समाज में एम. ए. पास करने वाले फिरोज़शाह मेहता पहले युवक थे। फ़िरोज़शाह ने चार वर्ष तक इंग्लैड में क़ानून का अध्ययन किया तथा 1868 में वहीं से वकालत (बैरिस्टर) की परीक्षा उत्तीर्ण कर भारत लौटे। मुम्बई के कमिश्नर आर्थर क्रॉफ़र्ड का एक क़ानूनी मामले में बचाव करते हुए उन्होंने स्थानीय शासन के सुधार की आवश्यकता महसूस की और 1872 के 'नगरपालिका अधिनियम' की रूपरेखा तैयार की, जिसके कारण वह 'बंबई स्थानीय शासन के जनक' कहलाए। 1873 में वह इसके आयुक्त नियुक्त हुए और 1884-85 तथा 1905 में अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 1886 से बंबई विधान परिषद के सदस्य रहते हुए वह 1893 में गवर्नर-जनरल की सर्वोच्च विधान परिषद के लिए चुने गए। 1890 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के छठे अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1910 में इंग्लैंड की संक्षिप्त यात्रा के पश्चात् वह बंबई विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए। 1911 में उन्होंने उस सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना में योगदान किया, जो भारतीयों द्वारा वित्त पोषित तथा नियंत्रित था। | |||
03 Aug 2024 | स्वाधीनता संग्राम में साहित्य का योगदान - राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त | 00:17:42 | |
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05 Jul 2024 | याद करो कुर्बानी - सुखदेव राज | 00:25:00 | |
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24 Sep 2023 | सीप के मोती - भाग 13 - पंचकोश | 00:28:40 | |
रेडियो आज़ाद हिन्द 90.8 पर कार्यक्रम सीप के मोती - भाग 13 मैं प्रो. ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव अध्यक्ष, इतिहास विभाग, अध्यक्ष, जीवनपर्यंत शिक्षा विभाग, डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) एवं मोटीवेशनल स्पीकर से चर्चा, विषय - पंचकोश। | |||
22 Jan 2024 | वतन का राग - ठाकुर रोशन सिंह | 00:23:07 | |
क्रान्तिवीर ठाकुर रोशन सिंह की जयंती पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
15 Aug 2023 | हिंदुस्ता हमारा - सरदार अजीत सिंह | 00:29:18 | |
सरदार अजीत सिंह की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम हिंदुस्ता हमारा । | |||
18 Oct 2022 | RamKrishna Khatri - Yaad Karo Kurbani | 00:45:14 | |
रामकृष्ण खत्री (जन्म: ३ मार्च १९०२ महाराष्ट्र के वर्मा सोनी परिवार मे हुआ था मृत्यु: १८ अक्टूबर १९९६ लखनऊ) भारत के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ का विस्तार मध्य प्रान्त और महाराष्ट्र में किया था। उन्हें काकोरी काण्ड में १० वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।[2]
हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेजी के अच्छे जानकार खत्री ने शहीदों की छाया में शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी। स्वतन्त्र भारत में उन्होंने भारत सरकार से मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की सहायता के लिये कई योजनायें भी बनवायीं। काकोरी काण्ड की अर्द्धशती पूर्ण होने पर उन्होंने काकोरी शहीद स्मृति के नाम से एक ग्रन्थ भी प्रकाशित किया था। लखनऊ से बीस मील दूर स्थित काकोरी शहीद स्मारक के निर्माण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
१८ अक्टूबर १९९६ को ९४ वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ।
रामकृष्ण खत्री का जन्म ३ मार्च १९०२ को ब्रिटिश राज में वर्तमान महाराष्ट्र के जिला बुलढाना बरार के चिखली गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा व माँ का नाम कृष्णाबाई था।[3] छात्र जीवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्याख्यान से प्रभावित होकर उन्होंने साधु समाज को संगठित करने का संकल्प किया और उदासीन मण्डल के नाम से एक संस्था बना ली। इस संस्था में उन्हें महन्त गोविन्द प्रकाश के नाम से लोग जानते थे। क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर उन्होंने स्वेच्छा से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के संगठन का दायित्व स्वीकार किया। मराठी भाषा के अच्छे जानकार होने के नाते राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने उन्हें उत्तर प्रदेश से हटाकर मध्य प्रदेश भेज दिया। व्यवस्था के अनुसार उन्हें संघ का विस्तारक बनाया गया था।[2]
काकोरी काण्ड के पश्चात् जब पूरे हिन्दुस्तान से गिरफ़्तारियाँ हुईं तो रामकृष्ण खत्री को पूना में पुलिस ने धर दबोचा और लखनऊ जेल में लाकर अन्य क्रान्तिकारियों के साथ उन पर भी मुकदमा चला। तमाम साक्ष्यों के आधार पर उन पर मध्य भारत और महाराष्ट्र में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के विस्तार का आरोप सिद्ध हुआ और उन्हें दस वर्ष की सजा हुई।
पूरी सजा काटकर जेल से छूटे तो पहले राजकुमार सिन्हा के घर का प्रबन्ध करने में जुट गये फिर योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिये प्रयास किया। उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया। काकोरी स्थित काकोरी शहीद स्मारक रामकृष्ण खत्री और प्रेमकृष्ण खन्ना के संयुक्त प्रयासों से ही बन सका।[2]
१७, १८, १९ दिसम्बर १९७७ को लखनऊ में काकोरी शहीद अर्द्धशताब्दी समारोह, २७, २८ फरबरी १९८१ को इलाहाबाद में शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद बलिदान अर्द्धशताब्दी समारोह तथा २२,२३ मार्च १९८१ को नई दिल्ली में शहीद भगतसिंह सुखदेव राजगुरु के बलिदान के अर्द्धशताब्दी समारोह में रामकृष्ण खत्री की उल्लेखनीय भूमिका रही।[4]
उनके पाँच पुत्र हुए प्रताप, अरुण, उदय, स्वप्न और आलोक।[5] लखनऊ में कैसरबाग की मशहूर मेंहदी बिल्डिंग के २ नम्बर मकान में अपने तीसरे पुत्र उदय खत्री के साथ उन्होंने अपने जीवन की अन्तिम बेला तक निवास किया। लखनऊ में ही १८ अक्टूबर १९९६ को ९४ वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ।
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14 Jan 2023 | Sipahi Bahdur - Azad Hind | 00:48:46 | |
सिपाही बहादुर सरकार भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 6 अगस्त 1857 को मध्य प्रदेश की सीहोर छावनी में विद्रोह के बाद स्थानीय सिपाहियों द्वारा स्थापित अपनी स्वतंत्र सरकार का नाम था। मेरठ की क्रान्ति का असर मध्य भारत में भी आया और मालवा के सीहोर में अंग्रेज पॉलीटिकल ऐजेन्ट का मुख्यालय होने के कारण यहां के सिपाहियों ने भी विद्रोह कर दिया और इस छावनी को पूरी तरह अंग्रेजों से मुक्त करवा लिया। किंतु यह सरकार मात्र ६ महीने ही चली। झांसी की रानी के विद्रोह को कुचलने के लिए बर्बर कर्नल हिरोज को एक बड़े लाव लश्कर के साथ भेजा गया। इन्दौर में सैनिकों के विद्रोह को कुचलने के बाद कर्नल हिरोज 13 जनवरी 1858 को सीहोर पहुंचा और अगले दिन 14 जनवरी 1858 को 356 विद्रोही सिपाहियों को सीहोर की सीवन नदी के किनारे घेर कर गोलियों से छलनी कर दिया। क्रांतिकारियों के इस सामूहिक हत्याकाण्ड के बाद सीहोर छावनी पर पुनः अंग्रजों का आधिपत्य हो गया। इस बर्बर हत्याकांड के कारण इस स्थान को मालवा के जलियांवाला के रूप में जाना जाता है। | |||
24 Aug 2024 | वतन का राग - रामकृष्ण गोपाल भंडारकर | 00:26:16 | |
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29 Jul 2023 | आज़ाद हिन्द - उजागर सिंह | 00:26:25 | |
उजागर सिंह की शहादत पर कार्यक्रम आज़ाद हिन्द | |||
10 Sep 2024 | वतन का राग - पं. गोबिंद बल्लभ पंत | 00:24:00 | |
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04 Jul 2024 | वतन का राग - गुलजारीलाल नंदा | 00:25:33 | |
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13 Oct 2023 | विशेष कार्यक्रम - भगिनी निवेदिता | 00:20:35 | |
रेडियो आज़ाद हिंद 90.8 Mhz पर भगिनी निवेदिता की पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम । | |||
02 Jun 2022 | Maharana Pratap - Special Program | 00:19:18 | |
महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुघल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया। उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था। लेखक जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के कुम्भलगढ में हुआ था। इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुण्डली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ. | |||
25 Aug 2024 | सीप के मोती - भाग 61, "उच्च मूल्य के सूत्र" | 00:25:00 | |
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11 Jun 2023 | वतन का राग - पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल' | 00:26:03 | |
1918 के मैनपुरी षड़यंत्र में भाग लेने के कारण बिस्मिल ने एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपना नाम दर्ज कराया। मातृवेदी' और 'शिवाजी समिति'। उन्होंने 28 जनवरी, 1918 को 'देशवासियों के नाम' नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की और इसे अपनी कविता 'मैनपुरी की प्रतिज्ञा' के साथ वितरित किया। पार्टियों के लिए धन इकट्ठा करने के लिए, उन्होंने सरकारी खजाने को लूट लिया। स्वतंत्रता संग्राम के उनके आदर्श महात्मा गांधी के आदर्शों के बिल्कुल विपरीत थे और वे कथित तौर पर कहते थे कि "स्वतंत्रता अहिंसा के माध्यम से प्राप्त नहीं की जाएगी"। परस्पर विरोधी विचारों और कांग्रेस पार्टी के साथ बढ़ती नाराजगी के बाद, उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन किया, जिसमें जल्द ही भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेता शामिल हो गए। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल ने साथी अशफाकुल्ला खां व अन्य लोगों के साथ लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन लूटने की योजना को अंजाम दिया। क्रांतिकारियों द्वारा काकोरी में 8-डाउन सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रोकने के बाद, अशफाकउल्ला खान, सचिंद्र बख्शी, राजेंद्र लाहिड़ी और राम प्रसाद बिस्मिल ने गार्ड को अपने अधीन कर लिया और खजाने के लिए नकदी लूट ली। हमले के एक महीने के भीतर, नाराज औपनिवेशिक अधिकारियों ने एक दर्जन से अधिक एचआरए सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। तथाकथित काकोरी षड्यंत्र में मुकदमे के बाद, इन चारों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई। | |||
30 Dec 2023 | विशेष कार्यक्रम - विक्रम साराभाई | 00:12:41 | |
भारत के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की पुण्यतिथी पर विशेष कार्यक्रम । | |||
26 Jul 2022 | Kargil Vijay Diwas - Yaad Karo Kurbani | 00:56:28 | |
कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ। कारगिल विजय दिवस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान हेतु यह दिवस मनाया जाता है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई दिन सैन्य संघर्ष होता रहा। इतिहास के मुताबित दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था। लेकिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम "ऑपरेशन बद्र" रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी। प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 550 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और 1400 के करीब घायल हुए थे।[ | |||
07 Nov 2022 | Vandematram - Yaad Karo Kurbani | 00:33:48 | |
वन्दे मातरम् का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है-
• ७ नवम्वर १८७६ बंगाल के कांतल पाडा गांव में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘वंदे मातरम’ की रचना की।
• १८८२ वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ में सम्मिलित।
• भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् सर्वप्रथम 1896 में गाया गया ।
• मूलरूप से ‘वंदे मातरम’ के प्रारंभिक दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बांग्ला भाषा में।
• वंदे मातरम् का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले अरविंद घोष ने किया।
• दिसम्बर १९०५ में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना।
• १९०६ में ‘वंदे मातरम’ देव नागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया।
• १९२३ कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे।
• पं॰ नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम अजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति ने २८ अक्टूबर १९३७ को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पैरे ही प्रासंगिक है, इस समिति का मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया।
• १४ अगस्त १९४७ की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन..’ के साथ..।
• १९५० ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना।
• २००२ बी.बी.सी. के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत।
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11 Jan 2024 | वतन का राग - लाल बहादुर शास्त्री | 00:27:07 | |
स्वतंत्रता सेनानी लाल बहादुर शास्त्री पर कार्यक्रम वतन का राग । | |||
03 Jul 2024 | विशेष कार्यक्रम - अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस | 00:22:37 | |
1. अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस पर विशेष कार्यक्रम में पूजा अयंगर - अध्यक्ष, महाशक्ति सेवा केंद्र से चर्चा बातचीत । | |||
01 Oct 2023 | वतन का राग - एनी बेसेन्ट | 00:20:49 | |
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23 Aug 2024 | विशेष कार्यक्रम - राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस | 00:27:04 | |
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24 Aug 2023 | वतन का राग - रामकृष्ण गोपाल भंडारकर | 00:26:16 | |
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। वह एक बड़े प्राच्यवादी विद्वान तथा समाज सुधारक थे। उन्हें आधुनिक भारत का पहला स्वदेशी इतिहासकार भी माना जाता है। उनका जन्म 6 जुलाई 1837 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में एक गौड़ सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। | |||
06 Jun 2023 | वतन का राग - गोपीनाथ बारदोलोई | 00:26:50 | |
गोपीनाथ बोरदोलोई भारत के स्वतंत्रता सेनानी और असम के प्रथम मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उन्होने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ नजदीक से कार्य किया। उनके योगदानों के कारण असम चीन और पूर्वी पाकिस्तान से बच के भारत का हिस्सा बन पाया। वे 19 सितंबर, 1938 से 17 नवंबर, 1939 तक असम के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें सन् 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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06 Dec 2023 | शौर्य गाथा - मेजर होशियार सिंह | 00:14:17 | |
परमवीर चक्र सम्मानित मेजर होशियार सिंह की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम शौर्य गाथा । | |||
13 Aug 2023 | सीप के मोती - भाग 7 -स्वास्थ के सात स्तंभ | 00:21:10 | |
रेडियो कार्यक्रम "सीप के मोती" मैं प्रो. ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव अध्यक्ष, इतिहास विभाग, अध्यक्ष, जीवनपर्यंत शिक्षा विभाग, डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) एवं मोटीवेशनल स्पीकर से चर्चा |
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21 Jun 2022 | Vishv Yog Diwas - Special Program | 00:12:21 | |
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरुआत साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। 11 दिसंबर 2014 को इस बात की घोषणा की गई कि हर साल 21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा। दरअसल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त महासभा में दुनियाभर में योग दिवस मनाने का आह्वान किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वीकार कर लिया। 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का ऐलान किया। | |||
15 Jun 2023 | वतन का राग - तरिनि प्रसन्ना मजूमदार | 00:25:31 | |
त्रिपुरा के कालीनगर में पैदा हुए नबीनचंद्र मजूमदार के पुत्र, बंगाल के एक फ्रंट-रैंकिंग गुप्त समाज नेता, तरिनिप्रसन्ना मजूमदार (1892 - 1918), अपनी जवानी की ऊंचाई पर शहीद हो गए थे। अपने क्रांतिकारी संघ की शुरुआत से ही, वह पुलिस की नजर में था और उसे बंगाल के विभिन्न स्थानों में भूमिगत होना पड़ा, जिससे उसकी शिक्षा बाधित हुई। कोमिला में इसी तरह के ठिकाने के दौरान, पुलिस ने उसके ठिकाने को घेर लिया। दुस्साहस के एक दुर्लभ कार्य में, वह एक रिवाल्वर और एक पिस्तौल के साथ पुलिस घेरे से फिसल गया और प्रशासन से हार गया। कुछ साल बाद, वह कलकत्ता के भवानीपुर क्षेत्र में फिर से प्रकट हुआ। इधर, जब पुलिस आधी रात में उसके घर पहुंची, तो उसने पहली मंजिल की बालकनी से छलांग लगा दी और उसका एक पैर टूट गया, लेकिन एक लंगड़े भिखारी की तरह व्यवहार करके पुलिस को ठगने में कामयाब रहा। कलकत्ता में पुलिस की पहरेदारी से बचने के लिए वे साथी क्रांतिकारियों के साथ ढाका गए, लेकिन इस बार उनके भाग्य ने उनका साथ दिया। फाल्टा बाजार मुठभेड़ में, उन्होंने नलिनीकांत बागची के साथ बहादुरी से अपनी स्थिति का बचाव किया जिसमें एक पुलिस कर्मी की मौत हो गई और अन्य घायल हो गए। रास्ते में तारिणिकांत भी पुलिस की गोली का शिकार हो गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। | |||
13 Sep 2023 | शौर्य गाथा - मेजर रामास्वामी परमेश्वरन | 00:14:13 | |
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12 Feb 2022 | Swami Dayanand Saraswati - Yaad Karo Kurbani | 00:39:36 | |
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक, तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक चिन्तक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। 'वेदों की ओर लौटो' यह उनका प्रमुख नारा था। | |||
29 Jul 2022 | Aruna Asaf Ali - Yaad Karo Kurbani | 01:00:16 | |
रुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।[1] अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया। कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष दो वर्ष के अंतराल के बाद सन् 1946 ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया। कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मज़दूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया। भाकपा में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन् 1958 ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन् 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं। दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए। संगठनों से सम्बंध श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं। | |||
29 Sep 2022 | World Heart Day - Swasth Charcha | 00:21:11 | |
वर्ल्ड हार्ट डे हर साल 29 सितंबर को मनाया जाता है। यह एक वैश्विक अभियान है, जिसकी मदद से लोगों को यह बताया जाता है कि हार्ट संबंधी बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है। हर साल इस दिन को एक स्पेशल थीम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। विश्व हृदय दिवस का उद्देश्य लोगों का ध्यान हृदय संबंधी रोगों की सतर्क करना है। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन ने आज विश्व जनसंख्या को प्रभावित करने वाले विभिन्न हृदय संबंधी मुद्दों और बीमारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन की स्थापना की। विश्व हृदय दिवस के आसपास की चर्चा सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि दिल के दौरे और दिल से जुड़े अन्य मामलों की बढ़ती संख्या के कारण ज्यादा से ज्यादा लोग इन हृदय संबंधी मुद्दों से प्रभावित हो रहे हैं। अनहेल्दी खाने की आदतें और एक गतिहीन जीवन शैली भी सभी उम्र के लोगों के लिए जरूरी है और इसके बारे में जागरूकता जरूरी है। | |||
12 Feb 2024 | हिंदुस्ता हमारा - नाना फडणवीस | 00:27:54 | |
नाना फडणवीस की जयंती पर कार्यक्रम हिंदुस्ता हमारा। | |||
01 Aug 2023 | हिंदुस्ता हमारा - लोकमान्य तिलक | 00:27:39 | |
बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। | |||
12 Jan 2024 | विशेष कार्यक्रम - स्वामी विवेकानन्द | 00:25:49 | |
आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानन्द की जयंती पर कार्यक्रम विशेष कार्यक्रम । | |||
26 May 2024 | सीप के मोती - भाग 48 - "महान गणितज्ञ, ज्योतिषी भास्कराचार्य के जीवन और उनके ग्रंथ लीलावती के बारे में" | 00:24:30 | |
सीप के मोती - भाग 48 कार्यक्रम मैं प्रो. ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव अध्यक्ष, इतिहास विभाग, अध्यक्ष, जीवनपर्यंत शिक्षा विभाग, डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) एवं मोटीवेशनल स्पीकर से चर्चा विषय "महान गणितज्ञ, ज्योतिषी भास्कराचार्य के जीवन और उनके ग्रंथ लीलावती के बारे में" । |